पिछले दो articles से मैं एक मानसिक बीमारी की चर्चा लगातार कर रही हूँ जो आज सबसे आम एवं सबसे विकट रूप में भयंकर रूप धारण करती जा रही है | इसके बारे में चर्चा करना ,जागरूक करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता बन गयी है क्योंकि इससे सबसे ज्यादा प्रभावित देश का वर्तमान , देश का भविष्य मतलब युवा एवं किशोर वर्ग है जो बहुत चिंताजनक है | ये उस दीमक के समान है जो बाहर तो नजर आती नहीं और अंदर ही अंदर ही खोखला करती जाती है | इसलिए इसका पता लगाना भी बहुत मुश्किल है क्योंकि जब तक इसका पता चलता है ये व्यक्ति को अंदर से पूरी तरह से ख़तम कर चुकी होती है | ये यदि प्रथम अवस्था पर ही यदि पकड़ में आ जाए तो इसका इलाज मुमकिन है क्योंकि यह seventh stage है | यदि हम स्वयं का समय समय पर आत्मपरीक्षण करते रहें तो इसकी किसी भी primary stage पर खुद को प्रेक्षित करके इससे बच सकते हैं | इसलिए मैं एक एक करके इसकी सारी stages को आपसे discuss करती रहूंगी | इसके हेतु मैंने You Tube पर भी एक motivational series शुरू की है जिसे मैं इन articles के साथ attach करती जा रही हूँ जिसे भी आप देख कर और detail में इसे समझ सकते हैं |
इसकी प्रथम एवं मूल अवस्था है “डर” जिसकी उत्पत्ति का मूल कारण है ‘इच्छा’ जिसका background स्वयं की माली हालत को देखते हुए नहीं बल्कि दूसरों को देखते हुए , उनसे competition का आधार हो | इच्छा जैसे ही पूरी हुई और चीज हासिल हुई तो उसे खोने का डर और अगर पूरी नहीं हुई तो निराशा का भाव |
इस इच्छा के प्रभाव से यहाँ तक कि देवता भी अछूते नहीं रहे हैं जिन्हें हम अपना कहीं न कहीं आदर्श मानते हैं | ऐसी ही एक कथा के माध्यम से आपको डर का प्रभाव समझाना चाहती हूँ |
माँ पार्वती के बारे मैं कौन नहीं जानता कि शिव को पाने के लिए उन्होंने कितने जन्म नहीं लिए , कितनी तपस्या नहीं | माँ भगवती तक को शिव को खोने का भय यानी डर सताने लगा | तभी बृह्मऋषि नारदमुनि वहां आये , माँ की चिंता भांप गए और उनको सुझाव दिया कि एक बार ऐसा ही डर स्वर्ग के राजा इंद्र की पत्नी इंद्राणी को भी सताने लगा था तो उन्होंने इंद्र को कल्पवृक्ष से बाँध कर ब्राह्मण पुत्रों को दान किया तो ब्राह्मण पुत्र कल्प वृक्ष का चयन कर ले गए थे और उन्होंने इंद्र को वहीँ छोड़ दिया था और तब से इंद्र उन्ही के साथ हैं , उनको खोने का डर हमेशा के लिए इंद्राणी को ख़त्म हो गया |
माँ पार्वती इतना डरी हुईं थीं कि तुरंत उनकी बात मान कर ऐसा ही शिव के साथ करने को तैयार हो गयीं |
शिव को कल्पवृक्ष से बांधकर ४ ब्रह्मपुत्रों को दान दे दिया गया | परन्तु शिव को कौन छोड़ सकता था ,बृह्मपुत्रों ने कल्पवृक्ष को छोड़ कर शिव का ही चयन किया और शिव को अपने साथ लेकर जाने लगे | माँ पार्वती की तो जैसे जान ही निकल गयी | बहुत मिन्नतें की, शिव को भी बृह्मपुत्रों को समझाने कहा परन्तु शिव ने भी बृह्मपुत्रों का साथ दिया और उल्टा पार्वती को समझाने लगे कि दान दी हुई वस्तु पर दान देने वाले का फिर कोई हक़ नहीं रह जाता | अंततः थक हार कर भेष बदल कर उनके रास्ते में बैठ गयीं और शिव की पूजा करने लगीं और उन बृह्मपुत्रों से कहा कि आप शिव के कितने बड़े भक्त हैं , सिद्ध करके दिखाओ | उनसे कहा कि शिव को पुष्प अर्पित करो अगर उन्होंने स्वीकार कर लिए तो ये सिद्ध हो जाएगा | बृह्मपुत्रों ने जैसे ही शिव को पुष्प अर्पित किये वो धूल बन गए और ऐसा हर बार हुआ जबकि भेष बदली हुई पार्वती ने जब शिव को पुष्प अर्पित किये तो तुरंत स्वीकार् हो गए | बृह्मपुत्रों को तब भेष बदली हुई पार्वती ने समझाया कि जिसके मन में लालच होगा या घमंड होगा ,शिव उसकी पूजा स्वीकार कर ही नहीं सकते | तुम लोगों ने शिव का ईश्वरत्व ख़तम कर उनको दास बना लिया है | तो क्या इस दुनिया का सञ्चालन कैसे संभव होगा ? ये दुनिया क्या तहस नहस नहीं हो जायेगी | तब जाकर उन बृह्मपुत्रों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शिव को मुक्त किया और शिव कैलाश पर पार्वती के साथ वापस आ पाए |
इस तरह डर उचित अनुचित तक का भेद भुलाकर कुछ भी कार्य करने को किसी को भी उकसा सकता है फिर परिणाम चाहे जो भी हो |
और भी डर के दुष्प्रभाव किस तरह से व्यक्ति के किन किन गुणों को प्रभावित करते हैं वो आप मेरे videos में दिए गए कई उदाहरणों द्वारा समझ सकते हैं | यदि इसी अवस्था पर खुद को सम्हाल लिया तो आगे कोई ताकत आपको कमजोर नहीं बना सकती |
For the last two articles, I have been constantly discussing about a mental illness which is taking a terrible form in the most common and most formidable form. Discussing about it, making awareness has become the biggest need today because the country’s most affected by this, the future of the country means the youth and adolescent section which is very worrying. It is like that termite which is not seen on the outside and it gets hollow inside itself. Therefore it is very difficult to detect it because by the time it is detected, it has completely exhausted the person from inside. If it is caught on the first stage then its treatment is possible because it is the seventh stage. If we keep introspecting ourselves from time to time, then we can avoid it by observing ourselves at any primary stage. So I will keep discussing all its stages one by one with you. For this, I have started a motivational series on You Tube which I am attaching with these articles, which you can see and understand in detail.
Its first and basic state is “fear”, which is the root cause of its origin, “Desire”, whose background is the basis of competition, not in view of one’s own financial condition, but in view of others. As soon as the wish is fulfilled and the thing is achieved, then fear of losing it and if it is not fulfilled, a feeling of despair.
Even the gods have not remained untouched by the effect of this desire, which we consider as our ideal somewhere. I want to explain the effect of fear to you through one such story.
Who I do not know about Maa Parvati, how many births she did not take to attain Shiva, how much penance. Even Mother Bhagwati started to fear the fear of losing Shiva. Then Bramrishi Nardamuni came there, sensed the mother’s concern and suggested to him that once the same fear was started to persecute Indrani, the wife of Indra, the king of heaven, he tied Indra with Kalpavriksha and donated it to the Brahmin sons and the Brahmin son Kalpa The tree was selected and he left Indra there and since then Indra is with him, the fear of losing him is gone for Indrani forever.
Mother Parvati was so scared that she immediately agreed to do the same with Shiva.
Shiva was tied to Kalpavriksha and donated to 4 Brahmaputras. But who could leave Shiva, Brihamputra left Shiv Kalpavriksha and chose Shiva and took Shiva with him. Mother Parvati died as soon as she died. Many pleaded, Shiva was also asked to explain to Brihmaputras, but Shiva also supported Brihmaputra and on the contrary, started explaining to Parvati that the donor has no right over the donated item. Finally, after losing defeat, she disguised herself and sat in his path and started worshiping Shiva and told those Brihamputras, show how big a devotee of Shiva you are. He told them to offer flowers to Shiva, if they accepted it, it would be proved. As soon as Brihmaputras offered flowers to Shiva, they became dust and this happened every time when the disguised Parvati immediately offered flowers when Shiva offered flowers to Shiva. Parvati explained in disguise to Brihamputras that Shiva cannot accept worship of one who has greed or pride. You have finished the divinity of Shiva and made him a slave. So how will the operation of this world be possible? Will this world not perish? At that time, those Brihamputras realized their mistake and freed Shiva and Shiva was able to come back with Parvati on Kailash.
In this way, the fear of forgetting even the distinction of proper inappropriate can incite anyone to do anything, whatever the result may be.
You can understand how the side effects of fear affect which qualities of a person through many examples given in my videos. If you manage yourself at this stage, then no further strength can make you weak.