एक नदी में दो तिनके बहे जा रहे थे | एक तिनका नदी के बहाव के सामने पड़ा हुआ था एवं दूसरा तिनका नदी के बहाव की दिशा में बहा जा रहा था | पहले वाला तिनका कुछ इस सोच के साथ बह रहा था मानो वो नदी से कह रहा हो कि मैं तुम्हें बहने नहीं दूंगा | तुम्हारे प्रवाह की दिशा में अड़कर बैठा हूँ | जबकि दूसरा तिनका मानो कह रहा हो कि मैं तो तुम्हारे ही साथ बहना चाहता हूँ ,जहां – जहाँ तेरा बहाव ,वहाँ – वहाँ मैं | पहले वाला तिनका नदी के प्रवाह का विरोध करते करते थक जाता है परन्तु नदी के बहाव को इस से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता | और दूसरा तिनका अपनी मस्ती में बहे जाता है बिना किसी विरोध के |
ये जीवन और ये संसार इस नदी के समान हैं ,इसके साथ च
लोगे तो बिना थके चलते रहोगे और अगर इसके विरोध में चलोगे तो विरोध करते करते एक दिन थक कर अपना अस्तित्व ही खो दोगे | अब ये निश्चित हमें करना होगा कि हम किस रास्ते को opt करते हैं |
Two straws were floating in a river. One straw was lying in front of the flow of the river and the other straw was flowing in the direction of the flow of the river. The first straw was floating with such a thought as if it was telling the river that I will not let you flow. I am sitting stuck in the direction of your flow. While the second straw was saying as if I want to flow with you, wherever you flow, I will flow there. The first straw gets tired of opposing the flow of the river but the flow of the river is not affected by this. And the second straw flows in its own fun without any opposition.
This life and this world are like this river, if you walk with it, you will keep walking without getting tired and if you walk against it, then one day you will get tired of opposing and lose your existence. Now we have to decide which path we opt for.